भारतीय IT सेक्टर पर सबसे बड़ा वार: H-1B VISA हुआ 15 गुना महँगा

अमेरिका का H-1B VISA : सालाना 88 लाख की फीस, 8.8 करोड़ में मिलेगा ‘गोल्ड कार्ड’ स्थायी निवास

वॉशिंगटन/नई दिल्ली।
अमेरिका ने विदेशी पेशेवरों के लिए सबसे लोकप्रिय वीज़ा श्रेणी H-1B VISA पर ऐतिहासिक बदलाव की घोषणा की है। नई नीति के तहत अब अमेरिकी कंपनियों को किसी भी विदेशी कर्मचारी के H-1B वीज़ा पर सालाना $100,000 (करीब 88 लाख रुपये) का शुल्क देना पड़ेगा। Moreover, अमेरिकी सरकार ने एक नई योजना ‘गोल्ड कार्ड’ शुरू की है, जिसके तहत कोई भी आवेदक $1 मिलियन (करीब 8.8 करोड़ रुपये) का भुगतान कर अमेरिका में स्थायी निवास (Permanent Residency) हासिल कर सकेगा।

Therefore, यह कदम न केवल अमेरिका की इमिग्रेशन पॉलिसी की दिशा बदलता है, बल्कि भारत समेत उन देशों को भी गहराई से प्रभावित करता है, जिनके लिए H-1B वीज़ा अब तक अमेरिका में करियर का सबसे अहम रास्ता रहा है।

H-1B VISA

भारतीयों का सपना और अब चुनौती – H-1B VISA

H-1B वीज़ा लंबे समय से भारतीय आईटी पेशेवरों का अमेरिकी सपना रहा है। In fact, अमेरिकी विभागीय आंकड़ों के अनुसार हालिया वित्त वर्ष में जारी किए गए 71% H-1B वीज़ा भारतीयों को मिले हैं। यही कारण है कि इंफोसिस, टीसीएस, विप्रो, एचसीएल और कॉग्निजेंट जैसी दिग्गज आईटी कंपनियाँ हर साल हजारों कर्मचारियों को अमेरिका भेजती रही हैं।

However, अब स्थिति पूरी तरह पलट सकती है। पहले H-1B का आवेदन शुल्क लगभग 1 लाख से 6 लाख रुपये तक रहता था। यह लागत बड़ी कंपनियों के लिए साधारण थी। But now प्रति कर्मचारी 88 लाख रुपये सालाना का खर्च किसी भी कंपनी के लिए भारी बोझ है।


गोल्ड कार्ड: पैसे देकर स्थायी निवास H-1B VISA

नई नीति का सबसे चौंकाने वाला हिस्सा है गोल्ड कार्ड वीज़ा स्कीम। इसके तहत आवेदक सीधे 8.8 करोड़ रुपये देकर अमेरिका में बिना समय सीमा के रह और काम कर सकेगा। On the other hand, इस सुविधा के बावजूद नागरिक अधिकार जैसे वोटिंग का हक़ या अमेरिकी पासपोर्ट नहीं मिलेगा।

Consequently, यह विकल्प सीधे-सीधे उन लोगों को लक्षित करता है जिनके पास अपार वित्तीय क्षमता है। अमेरिकी प्रशासन का अनुमान है कि करीब 80,000 गोल्ड कार्ड जारी कर 100 अरब डॉलर की कमाई की जा सकती है।

साथ ही, इसके तहत ट्रंप प्लेटिनम कार्ड और कॉर्पोरेट गोल्ड कार्ड भी लॉन्च किए जाएंगे। Moreover, इन श्रेणियों में अतिरिक्त शुल्क पर प्रीमियम सुविधाएँ जोड़ी जाएँगी, जैसे तेज़ प्रोसेसिंग, विशेष कर लाभ और कॉर्पोरेट रियायतें।

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सरकार का तर्क: “सिर्फ़ सबसे योग्य और अमीर आएँ”

अमेरिकी वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने कहा कि इस कदम से केवल “उच्च कौशल वाले सबसे योग्य लोग” ही अमेरिका आ पाएँगे। According to him, अब कंपनियाँ मनमाने ढंग से सस्ते विदेशी कर्मचारियों की भर्ती नहीं कर पाएँगी और अमेरिकी युवाओं की नौकरियों की रक्षा होगी।

इसके लिए सरकार एक वेबसाइट trumpcard.gov लॉन्च करने जा रही है, जहाँ आवेदन और भुगतान की प्रक्रिया डिजिटल रूप से होगी। Therefore, पूरी प्रक्रिया सरल लेकिन महँगी होगी।


भारतीय आईटी सेक्टर के लिए खतरे की घंटी

विशेषज्ञ मानते हैं कि नई नीति का सबसे बड़ा झटका भारत को लगेगा। For instance:

  • लागत में तेज़ बढ़ोतरी: अब भारतीय IT कंपनियों को H-1B कर्मचारियों पर कई गुना ज्यादा बजट खर्च करना पड़ेगा।
  • भर्ती रणनीति बदलेगी: कंपनियाँ अमेरिका में ही स्थानीय लोगों को नियुक्त करेंगी, जिससे भारतीय युवाओं के लिए मौके घटेंगे।
  • स्टार्टअप्स पर असर: छोटे और मध्यम स्तर की कंपनियाँ इस प्रतिस्पर्धा से बाहर हो सकती हैं।

As a result, भारतीय आईटी सेक्टर को वैकल्पिक रणनीतियाँ अपनानी होंगी।


क्या यह अदालत तक पहुँचेगा?

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि H-1B पर इतना भारी शुल्क लगाना कंपनियों की प्रतिस्पर्धा को प्रभावित करता है। In contrast, पहले यह वीज़ा विदेशी प्रतिस्पर्धा और नवाचार को बढ़ावा देता था। इसे अदालत में भेदभावपूर्ण या असंवैधानिक कहकर चुनौती दी जा सकती है।


भारतीय युवाओं पर सीधा असर

  • मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि से आने वाले युवाओं के लिए अब अमेरिका का सपना लगभग असंभव हो गया है।
  • Therefore, केवल वही लोग अमेरिका में बस पाएँगे जिनके पास करोड़ों रुपये निवेश करने की क्षमता होगी, या जिन्हें कंपनियाँ सच में “अनिवार्य” समझेंगी।
  • On the positive side, इससे भारत में ही शोध, स्टार्टअप और टेक्नोलॉजी के नए अवसर बढ़ सकते हैं।

अर्थशास्त्रियों का विश्लेषण

कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यह नीति अमेरिका में उच्च वर्ग और अमीर प्रवासियों का हित साधती है, जबकि मध्यम वर्गीय प्रतिभाशाली पेशेवरों को हाशिये पर धकेलती है।

However, भारत जैसे देशों के लिए यह एक अवसर भी है। For example, जब विदेशी विकल्प महंगे होंगे तो कंपनियाँ भारत में और अधिक निवेश कर सकती हैं।

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निष्कर्ष

अमेरिकी प्रशासन का यह फैसला न केवल इमिग्रेशन पॉलिसी की दिशा में सबसे कठोर मोड़ों में से एक है, बल्कि यह भारतीय आईटी सेक्टर और युवाओं के लिए भी भारी झटका है।

Indeed, H-1B वीज़ा जो अब तक लाखों भारतीय पेशेवरों के करियर का रास्ता था, अब अभूतपूर्व रूप से महँगा और कठिन हो गया है। In the coming months, यह साफ होगा कि यह कदम अमेरिकी अर्थव्यवस्था और वैश्विक आईटी जगत के लिए लाभकारी साबित होगा या नुकसानदेह।

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