GST Council Meeting 3–4 Sept: Bharat ki Tax System mein bada बदलाव

GST COUNCIL

नई दिल्ली: भारत की अप्रत्यक्ष कर प्रणाली, वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax – GST), अपने सबसे बड़े संरचनात्मक परिवर्तन के मुहाने पर खड़ी है। आगामी 3 और 4 सितंबर, 2025 को जीएसटी काउंसिल की एक महत्वपूर्ण बैठक होने जा रही है, जिसमें मौजूदा बहु-स्तरीय कर ढांचे को समाप्त कर एक नई, सरल दो-स्तरीय कर संरचना (Two-Rate Structure) को अपनाने पर ऐतिहासिक निर्णय लिया जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा “दिवाली उपहार” के रूप में प्रस्तुत किया गया यह सुधार, जहां एक ओर व्यवसायों और उपभोक्ताओं के लिए एक बड़ी राहत के रूप में देखा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर राज्यों के लिए राजस्व हानि की गंभीर चिंताएं भी लेकर आया है।

आठ साल पहले, 1 जुलाई 2017 को, भारत ने “एक राष्ट्र, एक कर” के महत्वाकांक्षी विचार के साथ जीएसटी को लागू किया था। इसका उद्देश्य दर्जनों केंद्रीय और राज्य करों को समाहित कर एक एकीकृत और पारदर्शी प्रणाली बनाना था। Consequently, वर्तमान में जीएसटी की चार मुख्य दरें हैं – 5%, 12%, 18% और 28%, जिनके अलावा कुछ आवश्यक वस्तुओं पर शून्य कर और सोना जैसी वस्तुओं पर एक विशेष दर लागू होती है। हालांकि इस प्रणाली ने कई बाधाओं को दूर किया, लेकिन इसकी जटिलता, विशेष रूप से विभिन्न दरों के कारण होने वाले वर्गीकरण विवादों (classification disputes) और अनुपालन (compliance) के बोझ को लेकर इसकी आलोचना होती रही है।

क्या है प्रस्तावित दो-स्तरीय संरचना?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने हालिया स्वतंत्रता दिवस भाषण में जीएसटी को और सरल बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया था। इसी दृष्टिकोण के अनुरूप, केंद्र सरकार ने एक क्रांतिकारी प्रस्ताव पेश किया है जिसे अब राज्यों के वित्त मंत्रियों के समूह (Group of Ministers – GoM) ने भी सैद्धांतिक रूप से स्वीकार कर लिया है।

प्रस्ताव के केंद्र में मौजूदा 12% और 28% की दरों को पूरी तरह से समाप्त करना है। इसके स्थान पर, अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं को केवल दो मुख्य स्लैब में समाहित किया जाएगा:

  • 5% की मेरिट दर (Merit Rate): इसमें मुख्य रूप से आवश्यक वस्तुएं और आम आदमी के उपयोग की चीजें शामिल होंगी। मौजूदा 12% स्लैब की लगभग 99% वस्तुओं को इस निचली दर में लाने का प्रस्ताव है, जिससे खाद्य तेल, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ और कई घरेलू सामान सस्ते हो सकते हैं।
  • 18% की मानक दर (Standard Rate): यह अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं के लिए मुख्य दर होगी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वर्तमान में 28% के उच्चतम स्लैब में आने वाली लगभग 90% वस्तुएं, जैसे कि एयर कंडीशनर, वॉशिंग मशीन, सीमेंट और छोटी कारें, इस स्लैब में आ जाएंगी, जिससे इनकी कीमतों में भारी कमी आने की उम्मीद है।

इन दो दरों के अलावा, कुछ चुनिंदा “सिन गुड्स” (Sin Goods) जैसे तंबाकू, पान मसाला और अल्ट्रा-लक्जरी आइटम (जैसे महंगी कारें) के लिए 40% की एक विशेष उच्च दर का प्रावधान होगा। This transition, यदि लागू हो जाता है, तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था में एक बड़े बदलाव का सूत्रपात करेगा, जिसका लक्ष्य अनुपालन को सुव्यवस्थित करना, कर चोरी को कम करना और सबसे महत्वपूर्ण, उपभोक्ता मांग को बढ़ावा देना है।

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उपभोक्ताओं और व्यवसायों के लिए संभावित लाभ

इस प्रस्तावित बदलाव का सबसे बड़ा और सीधा असर आम उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। मध्यम वर्ग के लिए महत्वपूर्ण कई वस्तुएं, जो वर्तमान में 28% कर के दायरे में हैं, 18% की दर पर आ सकती हैं। For instance, एक छोटी कार या एयर कंडीशनर खरीदना काफी सस्ता हो सकता है। इसी तरह, 12% से 5% स्लैब में आने वाली वस्तुओं से दैनिक घरेलू बजट को राहत मिलेगी। अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि इस कर कटौती से खुदरा कीमतों में 4-5% की कमी आ सकती है, जिससे त्योहारी सीजन से पहले बाजार में मांग को एक मजबूत प्रोत्साहन मिलेगा।

व्यवसायों के लिए, विशेष रूप से छोटे और मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिए, यह सुधार एक बड़ी राहत होगी। Furthermore, कम दरों का मतलब कम वर्गीकरण विवाद और मुकदमेबाजी है। व्यवसायों को अब यह निर्धारित करने में कम समय और संसाधन खर्च करने होंगे कि उनका उत्पाद किस टैक्स स्लैब में आता है। एक सरल कर प्रणाली से इनपुट टैक्स क्रेडिट (Input Tax Credit – ITC) का दावा करने की प्रक्रिया भी आसान होने की उम्मीद है, जिससे कार्यशील पूंजी (working capital) की रुकावट कम होगी और व्यापार करने में आसानी (Ease of Doing Business) बढ़ेगी।

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राज्यों की गंभीर चिंता: राजस्व का भारी नुकसान

हालांकि यह सुधार सतह पर आकर्षक लगता है, लेकिन राज्यों के लिए यह एक बड़ी वित्तीय चुनौती पेश कर रहा है। राज्यों की आय का एक बड़ा हिस्सा जीएसटी से आता है, और दरों में इस तरह की भारी कटौती से उनके राजस्व संग्रह पर सीधा और नकारात्मक प्रभाव पड़ने की आशंका है। The primary concern राजस्व में कमी है, जिससे उनकी कल्याणकारी योजनाओं और विकास परियोजनाओं पर वित्तीय दबाव बढ़ सकता है।

केरल जैसे उपभोक्ता राज्यों ने इस पर सबसे जोरदार चिंता व्यक्त की है। केरल के वित्त मंत्री के.एन. बालगोपाल ने चेतावनी दी है कि इस नई संरचना के लागू होने से राज्य को सालाना लगभग ₹8,000 से ₹9,000 करोड़ का भारी राजस्व नुकसान हो सकता है। उनका तर्क है कि केरल में व्यापार का एक बड़ा हिस्सा 18% और 28% के स्लैब के अंतर्गत आता है, और इन दरों में कटौती से राज्य की वित्तीय स्थिति गंभीर रूप से प्रभावित होगी। अकेले ऑटोमोबाइल क्षेत्र से ₹1,100 करोड़ के राजस्व नुकसान का अनुमान है।

यह चिंता केवल केरल तक ही सीमित नहीं है। पश्चिम बंगाल और तेलंगाना सहित कई अन्य राज्यों ने भी राजस्व हानि के मुद्दे पर स्पष्टता और मुआवजे की मांग की है। Indeed, राज्यों का मानना है कि केंद्र को इस वित्तीय झटके से निपटने में उनकी मदद के लिए एक ठोस मुआवजा पैकेज (Compensation Package) लाना चाहिए। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि जीएसटी लागू होने के बाद पहले पांच वर्षों के लिए राज्यों को राजस्व हानि की भरपाई के लिए एक मुआवजा तंत्र मौजूद था, जो जून 2022 में समाप्त हो गया। अब राज्य एक नए और विश्वसनीय वित्तीय सुरक्षा जाल की मांग कर रहे हैं।

आगे की राह: संतुलन और सर्वसम्मति की चुनौती

आगामी 3-4 सितंबर की जीएसटी काउंसिल की बैठक केवल कर दरों में बदलाव के बारे में नहीं है; यह सहकारी संघवाद (cooperative federalism) की एक बड़ी परीक्षा भी है। केंद्र सरकार को राज्यों की वास्तविक चिंताओं को दूर करने और एक स्वीकार्य समाधान खोजने के लिए एक नाजुक संतुलन बनाना होगा। Therefore, बैठक में मुआवजे के फार्मूले पर गहन चर्चा होने की संभावना है। क्या केंद्र सरकार उपकर (cess) संग्रह से होने वाली बचत को साझा करेगी, या कोई नया तंत्र विकसित किया जाएगा, यह देखना महत्वपूर्ण होगा।

विशेषज्ञों का मानना है कि अल्पावधि में राजस्व का नुकसान हो सकता है, लेकिन लंबी अवधि में, घटी हुई दरें उच्च अनुपालन और बढ़ी हुई खपत को जन्म दे सकती हैं, जिससे अंततः कर संग्रह में वृद्धि होगी। एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स जैसी एजेंसियों ने भी अनुमान लगाया है कि सरल प्रणाली से कार्यान्वयन आसान होगा और लंबे समय में राजकोषीय राजस्व को बढ़ावा मिल सकता है।

In conclusion, जीएसटी प्रणाली में प्रस्तावित यह बदलाव भारत की आर्थिक दिशा को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करने की क्षमता रखता है। यह एक साहसिक कदम है जो उपभोक्ताओं को राहत देने और व्यवसायों के लिए माहौल को सरल बनाने का वादा करता है। हालांकि, इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि जीएसटी काउंसिल राज्यों की राजस्व संबंधी चिंताओं को कितनी प्रभावी ढंग से संबोधित करती है और इस ऐतिहासिक सुधार को लागू करने के लिए एक सर्वसम्मत मार्ग प्रशस्त करती है। आने वाले दिनों में होने वाली यह बैठक न केवल भारत की कर नीति, बल्कि केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों के भविष्य को भी आकार देगी।

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